सबसे पहले तो मुझे अप सब लोगों का धन्यवाद देना चाहिए की अप ने किस तरह से मैंने अपनी किशोर ननद को ट्रेन किया…. लेकिन अचानक हम लोगों को वापस आना पड़ा जैसा की तय हुआ था की होली में जब हम लोग आएंगे तब तक उस का इन्ट्रकोरस मेरा मतलब है इंटर का कोर्स खत्म हो चुका होगा और वो साल भर के लिए हम लोगों के पास आके रहेगीं जब हम उस की अच्छी तरह कोचिंग करायेंगें
शादी में आप सब को ये भी याद होगा की मेरी ननद गुड्डी ने अपने जीजा जित से भी वादा किया था की …. इस साल जब वो होली में आयेंगे तो वो उनसे जम के होली खेलेगी, और आखिर खेलेगी भी क्यों नहीं, क्यों की उन्होंने ही तो उसकी सील पहले पह्लाल तोडी थी, और उस के बाद जो उसने चलना शुरू किया तो अपने प्यारे भइया
और मेरे सेक्सी सैंया के साथ चुदावा के दम लिया.
लेकिन वादा होली का इस लिए भी था की जब वो नौवें म थी और जीत उस के जीजा पहली बार होली खेलने आये तो, होली में जीत का हाथ साली के चिकने गाल से फिसल के फ्राक के अन्दर नए उभरते मॉल तक पहुँच गया और एक बार जब जीजा का हाथ साली के मॉल तक पहुँचा जाय, मामला होली का हो, भंग की तरंग का हो, तो बिना रगडन मसलन के …. लेकिन बुद्ध साली बुरा मान गई …. और वो तो जब शादी के माहोल में अपनी उस बुद्ध ननद को बुर के मजे के बारे में बताया तो ख़ुद वो अपने जीजा से सैट और पट गई …. लेकिन ये सारी बातें तो में आपको बता ही चुकी हूँ ननद की ट्रेनिंग में…. अब दास्ताँ उसके आगे की …. कैसे होली में हम फ़िर दुबारा उनके, राजीव के मायके गए, और राजीव मेरी ननद कम. गुड्डी के लिए तो ललचा रहे ही थे, मेरी नई बनी बहन और अपनी एक लौटी छोटी साली, मस्त पंजाबी कुड़ी अल्पना और …. उस से भी ज्यादा उस की छोटी बहन कम्मो के लिए, जिसके लिए मैंने कहा था क होली में जब आयेंगे तो मैं उस की भी दिल्लौंगी तो
1 अगले दिन गुड्डी के घर सिर्फ औरतों की होली… सारी ननद
भाभीयां… १४ से ४४ तक…. और दरवाजा ना सिर्फ अंदर से बंद बल्की
बाहर से भी ताला मारा हुआ… और आस पास कोइ मर्द ना होने से… आज
औअर्तें लडकियां कुछ ज्यादा ही बौरा गईं थी। भांग, ठंडाइ का भी इसमें
कम हाथ नहीं था। जोगीडा सा रा सा रा… कबीर गालियों से आंगन गूंज
रहा था। कुच बडी उमर की भौजाइयां तो फ्राक में छोटे छोटे टिकोरे वाली
ननदों को देख के रोक नहीं पा रहीं थीं. रंग, अबीर गुलाल तो एक बहाना
था। असली होली तो देह की हो रही थी….. मन की जो भी कुत्सित बातें थी
जो सोच भी नहीं सकते थे… वो सब बाहर आ रही थीं। कहते हैं ना होली
साल भर का मैल साफ करने का त्योहार है. तन का भी मन का भी…तो
बस वो हो रहा था। कीचड साफ करने का पर्व है ये इसीलिये तो शायद
कई जगह कीचड से भी होली खेली जाती है.. और वहां भी कीचड की भी
होली हुई। पहले तो माथे गालों पे गुलाल, फिर गले पे फिर हाथ सरकते
सरकते थोडा नीचे…। नहीं नहीं भाभी वहां नहीं…. रोकना, जबरदस्ती…।
अरे होली में तो ये सगुन होता है….। उंह.. उंह… नहीं नहीं..। अरे क्यों क्या ये
जगह अपने भैया केलिये रिजर्व की है क्या या शाम को किसी यार ने टाइम
दिया है… फिर कचाक से पूरा हाथ… अंदर..। और ननदें भी क्यों छोडने
लगी भौजाइयों को…। क्यों भाभी भैया ऐसे ही दबाते हैं क्या…. अरे भैया से

